इस अध्याय में भगवान भौतिक गुणों और उनकी प्रकृति के बारे में बताते हैं।
इस ज्ञान को भगवान परम ज्ञान की संज्ञा देते हुए कहते हैं कि ऋषि-मुनिगण इस ज्ञान को जानकर ही परम शांति को प्राप्त हुए हैं।
इस संसार में समस्त जीवों को जन्म देने वाली प्रकृति माता है और ब्रह्म (आत्मा) को जीव में स्थापित करने वाले भगवान सबके पिता हैं।
सत्त्व, रजस् और तमस् — ये तीन गुण प्रकृति से ही उत्पन्न होकर अविनाशी आत्मा को नश्वर शरीर के बंधन में डालते हैं।
सत्त्वगुण जीव को शुद्ध करते हुए ज्ञान के मार्ग पर ले जाता है।
रजोगुण मनुष्य को लोभ और कामनाओं में लगाता है,
वहीं तमोगुण, अज्ञान से उत्पन्न होकर, निद्रा, आलस्य और प्रमाद में लगाता है।
जब किसी मनुष्य की मृत्यु सत्त्वगुण की वृद्धि के साथ होती है,
तब वह उत्तम लोकों (स्वर्गादि) को प्राप्त होता है।
रजोगुण की वृद्धि उसे मनुष्य लोक में वापस लाती है,
और तमोगुण की वृद्धि पर मरने के बाद पशु-पक्षी आदि नीच योनियों की प्राप्ति होती है।
जब मनुष्य इन तीनों गुणों को ही कर्त्ता समझता है और भगवान को इस सबसे परें समझता है —
तो वही ज्ञानी कहलाता है।
वही गुणातीत पुरुष इस संसार के कष्टों से मुक्त होकर आनंद को प्राप्त करता है।
गुणातीत पुरुष के लक्षणों को भगवान अर्जुन को बताते हैं:
— जो ज्ञान (सत्त्व), कर्म (रजस्) और अज्ञान (तमस्) में एकीभाव रखते हैं,
— जो मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण को एक ही दृष्टि से देखते हैं,
— जिनका कोई प्रिय और अप्रिय नहीं होता,
— जो निंदा और स्तुति में समान रहते हैं — ऐसे पुरुष गुणातीत होते हैं।
वे सदा ही भगवान की अनन्य भक्ति में लगे रहते हैं —
और भगवान भी ऐसे भक्तों को सदा आश्रय प्रदान करते हैं।