श्रीमद्भगवदगीता माहात्म्य
गीतशास्त्रमिदं पुण्यं यः पठेत्प्रयतः पुमान् |
विष्णोः पदमवाप्नोति भयशोकादिवर्जितः ||
अर्थात् :- जो मनुष्य शुद्धचित्त होकर प्रेमपूर्वक इस पवित्र गीताशास्त्र का पाठ करता है या जो पढता है, वह भय और शोक आदि से रहित होकर विष्णुधाम को प्राप्त कर लेता है |
गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च |
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्म कृतानि च ||
अर्थात् :-जो मनुष्य सदा भगवतगीता पढ़ने वाला है तथा प्राणायाम में तत्पर रहने वाला हैं , उसके इस जन्म और पूर्व जन्म में किये हुए समस्त पाप निःसंदेह नष्ट हो जाते हैं |
मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने-दिने |
सकृद्रीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम् ||
अर्थात् :- जल में नितदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मल का नाश करनें वाला है , परन्तु गीतारूपी जल में एकबार भी किया हुआ स्नान संसार मल को नाश करने वाला है |
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः |
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख्पद्मद्विनिः सृता ||
अर्थात् :- जो गीता साक्षात् भगवान् श्रीविष्णु के मुखकमल से प्रकट हुई है ,उस गीता का भलीभांति गान करना चाहिए | यदि हम ऐसा करते हैं तो किसी और शास्त्र को जानने से क्या प्रयोजन ?
भारतामृतसर्वस्वं विष्नोर्वक्त्राद्विनिः सृतं |
गीतागङ्गोदकं पीत्वा पूर्वजन्म न विद्यते ||
अर्थात् :- जो गीता महाभारत का अमृतोपम सार है तथा जो भगवान श्रीकृष्ण के मुख से प्रकट हुआ है | उस गीतरूप जल पी लेने पर पुनः इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता |
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः |
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ||
अर्थात् :- सम्पूर्ण उपनिषदें गौ के समान हैं | गोपालनन्दन श्रीकृष्ण दुहने वाले हैं , अर्जुन बछड़ा है तथा महान गीतामृत ही उस गौ का दुग्ध है और शुद्धचित्त वाला श्रेष्ठ मनुष्य ही इसका भोक्ता है |